लीलाएँ
गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं सब वृक्षों की लेखनी बनाऊं और पूरी धरती का कागज करूं तो भी भगवान राम की महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता. इसी प्रकार से सच्चे गुरु की महिमा उनके जीवन चरित्र का भी वर्णन असंभव है.
“ हरि अनंत हरि कथा अनंता.” इस पुस्तक का मूल उद्देश्य गुरु की महत्ता को, सात्विकता को , सत्य को स्थापित करना है. सद्गुरु तूमी वाले दादाजी की वाणी जो बार बार उनसे ही सुनी गई, जीवन चरित्र की घटनाएं जो प्रत्यक्ष देखी गई,
अनेकानेक लोगों से बारंबार सुनी गई, उनको मोतियों में, 108 मनको में पीरों कर संकलन के तौर पर माला के रूप में प्रस्तुत करने का यह प्रयास मात्र है. मन को गुरु – भक्ति की माला में बांधने का यह प्रयास है. “ कर का मनका डार दे
मन का मनका फेर.” भगवत गीता कहती है, “ अज्ञानी मनुष्य पशु के समान होता है.” हमारा ज्ञान, हमारी बुद्धि, हमारा विवेक हम से अधिक प्रज्ञावान की तरफ आकर्षित होता है और श्रद्धावान बुद्धि गुरु की तरफ नतमस्तक हो ही जाती है.
गुरु का सत्संग जो है वही उसका प्रसाद है. यह गुरु भक्ति माला 108 और इसके मनकों का संकलन सत्संग का ही फल है. मनुष्य मात्र की प्रवृत्ति बांटने की होती है. जिस प्रकार से मंदिर में प्रसाद मिलता है उसी प्रकार से गुरु के आश्रम से
सत्संग का प्रसाद मिलता है. “राम नाम की लूट है लूट सके तो लूट.” इस संकलन में गुरुजी तूमी वाले के नई पीढ़ी के चेलों और पुरानी पीढ़ी के चेलों मैं दोनों का बड़ा मनोहर समन्वय रहा. सत्य को बल देने के लिए साक्षी की आवश्यकता
होती है. नई पीढ़ी के संकलन को पुरानी पीढ़ी ने सत्यापित कर अपनी मुहर लगा दी है. अनगिनत शिष्यों की संख्या के कारण हम किसी का नाम प्रकाशित नहीं कर रहे है. इसका श्रेय सबको बराबर जाता है. मां के लिए सब बच्चे समान होते हैं,
गुरु के लिए सब शिष्य समान होते हैं. किसान तो खेत में सब बीज बराबर होता है फिर भी कहा गया है, “गुरु की गति गुरु जाएगा और चेले की गति चेला.”