मनका – 31
|| निर्मल मन जन सो मोहि पावा मोहे छल कपट छिद्र न भावा ||
गुरुजी तूमी वाले कहते थे बेटा दादा भगवान तो ब्रह्म थे. उनके पास भ्रम का कोई काम नहीं था. वे तो नन्हे से बालक समान थे. कई बरस तक तो लोग उन्हें समझ ही नहीं पाए. पेड़ के नीचे लोगों ने उन्हें मल मे पड़े देखा और बोले यह साफ तो कर लो. वे बोले “ अरे! तेरी अड़ी हो तो तू साफ कर ले!”
अध्यात्म में मन की स्वच्छता प्रथम है. दादा भगवान ने सदैव मन की स्वच्छता को देखा. एक बार जबलपुर से एक बड़ा सेठ 56 प्रकार के व्यंजन, मिठाईयां और अनेकों उपहार लेकर दादा भगवान के दरबार में पहुंचा और सारा सामान उनके सामने रखवा दिया. गांव की एक छोटी जाति की महिला दूर खड़ी हुई थी वह अपने घर से दादाजी के लिए प्रेम से गुड़ और टिक्कड़ लाई थी. सब प्रकार के व्यंजन छोड़ दादा जी बोले “अरे माई राम! हमें भोजन कराओ” और प्रेम से उसका गुड़ और टिक्कड़ खाने लगे.
// सीताराम सीताराम सीताराम सीता //
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमी वाले दादा जी की जय! दादा भगवान की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||