मनका – 33
|| मेजर जसवंत सिंह ||
जबलपुर के आगे कैंट रोड फिर बरेला और अंदर जमुनिया ग्राम है. मिलिट्री का छावनी इलाका होने के कारण मिलिट्री वालों का भी आना जाना वहां पर बना रहता था. एक मेजर इतवार इतवार दादा जी के दर्शन को आता था और एक इतवार दादा भगवान ने प्रेम से उस पर हाथ फेरा तो उसकी 3 दिन की समाधि लग गई. उसकी समाधि टूटी तो वह अपनी ड्रेस पहन कर भागकर वापस छावनी पहुंचा.
अपने मिलिट्री स्कूल में उसने जाते से ही पूछा “परेड किसने ली?” अर्दली बोला “ सर आपने” अर्दली को उसने चांटा रसीद दिया. अर्दली अपना गाल संभालते हुए बोला “सर देख लीजिए , आपके ही साइन हैं 3 दिन से आप बराबर दोनों समय परेड ले रहे हैं” मेजर का सिर चकरा गया, उसे समझ आ गया यह दादा भगवान की लीला है.
वह वापस दादा भगवान के पास पहुंचा और “ बोला यह क्या कर रहे हो?” दादा भगवान ने मेजर के गले की रुद्राक्ष की माला और उसके ड्रेस पर लगे तमगे खींच खींच कर फाड़ डाले. और बोले “जो तेरी मर्जी हो कर.” मेजर दादा भगवान को दंडवत हो गया और आगे पूरा जीवन उसने दादा भगवान की सेवा में समर्पित कर दिया. दादा भगवान ने उसे दीक्षा दी.
उसके सहयोगी उसे ढूंढते हुए आए तो उसने खूंटी पर टंगी हुई अपनी ड्रेस की ओर इशारा किया और बोला “मैं इस्तीफा दे चुका हूं, वह खूंटी पर टंगा है मेजर जसवंत सिंह.” दादा भगवान के बताए अनुसार सीता पहाड़ी पर उसने साधना करी और आज भी वहीं उसकी समाधि है.
// सीताराम सीताराम सीताराम सीता //
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमी वाले दादा जी की जय! दादा भगवान की जय!! ||गुरु -भक्ति -माला – 108||