मनका-10
|| सुक्खम् ना दुक्खम् पापम् न पुण्यम्-सुक्खम् ना दुक्खम् पापम् न पुण्यम् ब्रह्म सत्यम् चिदानंद रूपम केवल शिवोहम् शिवोहम् शिवोहम् शिवोहम् जो मैं हूं सो तू है जो तू है सो मैं हूं||
गुरु जी कहते थे पूरे भारतवर्ष में ( सन 1850 से 1862 के बीच ) हैजा या काला बुखार आया था जिसमें हमारे माता-पिता हर-हर हो गए थे. पिताजी हर कुड़ी के ठेकेदार थे. वे बड़े उदार और नेक इंसान थे. अत्यंत भजन प्रेमी भी थे.अंत समय में उनकी बैलगाड़ी की रस्सी गांव से कुछ दूर पहले एक ठूंठ में बंध गई. तब बैलों के गले में मंजीरे बांधते थे , वह बजने लगे.
मंजीरे की धीमीआवाज सुनाई दी की यह तो पिताजी की बैलगाड़ी है तो हम दौड़ कर बैलगाड़ी ले आए और भजन मंडली को बुलावा दे दिया. दो एक भजन सुनकर पिताजी हर-हर हो गए थे.
तत्पश्चात गुरुजी धनोरा गांव में ननिहाल जा कर रहे. उनका बचपन का नाम नन्हे लाल था. बच्चे उन्हें नन्हे भैया कह कर पुकारते थे. पूरा नाम नन्हे लाल पति नंद था.
हैजे में उनकी माताजी भी हर-हर हो गई. फिर उनकी बुआ ने देखभाल की. गुरु जी गूजर समाज के थे. पड़ोस के मालगुजार परिवार में उनकी बुआ ने 12 बरस की उम्र में विवाह की बात चलाई. बच्चों ने आकर कहा कि भैया जी आप का ब्याह होगा. तुरंत गुरुजी ने निश्चित किया- “ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या “और घर छोड़ कर चल दिए.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||