मनका-11
|| निर्भय आना निर्भय जाना निर्भय काल कभी ना खाना||
गुरु जी की पितृ भूमि नयागांव और नंदवाड़ा के बीच एक प्राचीन कुब्जा नदी बहती है. नया गांव में एक रात एक साधु पहुंचा. लोगों ने इच्छा प्रकट करी कि महाराज आज रात आप यहीं रुक जाइए. साधु महाराज बोले रात रुक तो जाएं लेकिन हमें जल पीने के लिए बहते हुए पानी का चाहिए.
साधुओं के लिए प्रसिद्ध है जलतीअग्नि पवित्र होती है, चलता साधु पवित्र होता है और बहता पानी पवित्र होता है. रात में घुप्प अंधेरा था नदी के रास्ते श्मशान घाट भी था. किसी की हिम्मत नहीं थी पर बच्चे बोले नन्हे भैया को बुला लो वे पानी ले आएंगे. तब बुलावे पर गुरुजी गए और दो बाल्टीयां हाथ में भरकर नदी से तुरंत ले आए. गुरुजी की उम्र तब 11-12 बरस की थी.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||