मनका-13
||पाँच तूमा दान बराबर सौ गऊओं के दान बराबर है||
गुरुजी का तूमा से प्रेम बचपन से था. गुरु जी कहा करते थे 5 तूमियों का दान 100 गउओं के दान के बराबर है. यह तो कहना बड़ा मुश्किल है कि गुरु जी को तूमा से कब प्रेम हुआ परंतु गुरु जी की यह सबसे बड़ी खोज थी. तूमी का ही कमंडल बनता है.साधु सन्यासी भी वैज्ञानिकों की तरह ध्यान मग्न रहते हैं. एक असली साधु भी किसी वैज्ञानिक से कम नहीं होता और गुरु जी तो परमवैज्ञानिक थे. यह बातें सत्संग से ही पता चलती हैं.
गुरु जी कहते थे जन्म होते ही पात्र की आवश्यकता होती है. तूमा संसार का सर्वश्रेष्ठ पात्र है यह प्रकृति प्रदत्त है. तुमा तुमा बोलोगे तो उमा उमा निकलेगा और ऊमा या ने पार्वती. महा प्रलय में भी यह नहीं डूबता. जल में भी तैरता रहता है. हवा में भी उड़ता रहता है.भोजन भी इसमें सिद्ध हो जाता है. हमने बोरा भर भर के तीर्थों में साधु संन्यासियों को तूमा दान करी है. खाट के चारों पाये पर तूमा बांधकर तूमे की नाव बनाकर बहन बेटियों बूढ़े बच्चों को उफनती नदी भी पार कराई है.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!