मनका-16
|| संसार में कछुआ घाई रहो||
गुरु जी कहते थे संसार में कछुए की तरह रहो यानी जिस प्रकार से कछुआ अपने सारे अंग अपनी खोल के अंदर ही समेट कर रखता है ऐसी ही अपनी साधना होनी चाहिए. जरा कुछ बाहर हलचल हुई तो खट से अपन अपनी खोल के अंदर. गुरुजी संसार में कभी भी जाहिर नहीं थे. कभी भी नहीं चाहते थे कि यहां भीड़ भाड़ हो. उनकी साधनाएं हमेशा गुप्त रहीं. वे कहते थे यहां की हमारी शांति भंग हो जाएगी. तारानगर पंछी तीर्थ से तो राष्ट्रीय राजमार्ग निकलता है परंतु जिसे हम बुलाते हैं वही यहां पर आ पाता है.
2003 मे एक बार प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के रिपोर्टर ने भी उनका इंटरव्यू एक छोटी सी तस्वीर लेकर सारे अखबारों में छापना चाहा परंतु गुरु जी ने मना कर दिया. बोले भाई हम तो सारी दुनिया छोड़ कर यहां आकर बैठे हैं तुम छाप दोगे तो सारी दुनिया यहां आ जाएगी.
जानकारों के अनुसार घर छोड़ने के 12 बरस बाद गुरु जी ने उज्जैन में अग्नि अखाड़े में भी 12 बरस बिताए परंतु गुरु किसी को नहीं बनाया. 12 और बरस संपूर्ण भारत भ्रमण भी किया किंतु उन्हें गुरु नहीं मिले. बोले बड़े-बड़े संत महंत मठाधीश शंकराचार्य भी मिले लेकिन किसी के अंदर हमें राम नहीं मिला. गुरु तो उसे ही बनाएंगे जिसके अंदर राम हो.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!! ||गुरु -भक्ति -माला – 108||