मनका-18
||चलती चकिया देखकर दिया कबीरा रोए, दोई पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय और जो किले से लग गया उसका बाल न बांका होय||
विद्वान लोग हमेशा सिक्के का दूसरा पहलू भी देखते हैं. माया मिली न राम भी पुरानी कहावत है. अगर यह एक संसार है , हमें जो दिख रहा है जिसकी प्रत्यक्ष अनुभूति हो रही है तो अवश्य ही दूसरा संसार भी हो नहीं चाहिए जो परोक्ष है. एक बार एक शिष्य ने गुरु जी से पूछा था कि गुरु जी क्या भूत होते हैं तो गुरु जी ने बचपन का किस्सा बताया. बोले हम खेतों के बीच में मचान बनाकर रात पहरा देते थे वही सोते थे. अचानक पड़ोस के खेत में जो पहरा दे रहा था वह चिल्लाया बचाओ! बचाओ! हम कूदकर वहां तुरंत पहुंचे तो देखा कोई दिख नहीं रहा परंतु हमारे पड़ोसी की पिटाई हो रही है. हमने तुरंत कंबल उठाकर उसके ऊपर डाल दिया. पड़ोसी तो भाग गया लेकिन कंबल में भूत पकड़ में आ गया. वह रुई की तरह महसूस हो रहा था.हमने आव देखा ना ताव और घूंसे पर घुसे मारने शुरू कर दिए. अब भूत कह रहा था बचाओ!बचाओ! बड़े भैया मुझे क्षमा करो मेरा कल्याण करो! हमने कहा तेरे नाम से यह अमावस्या को हवन कर देंगे तू जहां से आया है वहीं चले जा. फिर अमावस्या पर हवन करवाया तो पास पुराने पेड़ का एक ठूंठ था जो देखते ही देखते पूरा जलकर भस्म हो गया और आवाज आई हे नारायण! हे नारायण!
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||