मनका-19
|| लाखों योजन पर्वत ऊंचे घाटी विकट करोड़ और करकर जतन फिरे बहुतेरे पहुंचे बिरला सूर||
एक पुराना गीत है ,तूने रात बिताई सोए के दिवस बिताया खाए के हीरा जन्म अमोल है कौड़ी बदली जाए. गुरु जी कहते थे प्रत्येक दिन सूर्य उदित होता है और अस्त होता है. मनुष्य का जीवन सिर्फ और सिर्फ सुधार के लिए होता है. 84 लाख योनियों में भटकने के बाद यह मनुष्य शरीर प्राप्त होता है. जीव जब मां के गर्भ में आता है तो भागवत में भी लिखा है अंगूठे के बराबर नारायण उसे दर्शन देते हैं हाथ जोड़कर वह बोलता है संसार में आकर मैं आपकी ही सेवा करूंगा आपका ही नाम लूंगा किंतु माया में फिर लिपटा जाता है. मनुष्य मूर्ख है जो इस संसार में सुख की खोज करता है. सुख तो सिर्फ हरि भजन में है. गुरु की प्राप्ति में है.
अपना उद्धार कौन नहीं करना चाहता ! कौन परम सुख की प्राप्ति नहीं करना चाहता ! किंतु मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक गुरु जो ध्रुव तारे के समान होता है वह हर किसी को प्राप्त नहीं होता.
गृहस्थ भी प्रयत्न कर रहे हैं साधु सन्यासी तो कर ही रहे हैं परंतु वह परम पद या ध्रुव समान नारायण की गोद किसी विरले को ही प्राप्त हो होती है.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||