मनका-20
|| चाहे शिव बिरंचि सम होई बिन गुरु भव निधि तिरे ना कोई||
सत्य तो यह है कि गुरुजी का अनुभव और उनकी वाणी वेदों से परे थी. ऐतिहासिक था उनका जीवन. मध्य आयु में उत्तर की ओर गुरुजी ने हिमालय के अधिकतर सभी तीर्थ क्षेत्र किए थे केदारनाथ बद्रीनाथ ब्रह्म- कपारी गंगोत्री यमुनोत्री,नेपाल पशुपतिनाथ. पूर्व की ओर गंगासागर ,ढाका-बंगाला कोलकाता(कोलकाता का पुराना नाम गुरुजी कंचना पुरी बताते थे) दक्षिण में कन्याकुमारी रामेश्वरम. पश्चिम में पुणे सतारा, गुजरात का कोटेश्वर तीर्थ, आशापुरी और गिरनार गढ़ तो गुरु जी प्रत्येक बरस जाते थे. गुरु जी कहते थे बेटा हम लाहौर में भी 5 साल रहे. आजादी के पहले की बात है लाहौर में बीच शहर में मुख्य एक पत्थर है जिस पर यह लिखा हुआ है “लव की बसाई लाहौर”. गुरु जी कहते थे अब तो यह सब सपना हो गया.
उन्होंने भारत भर में बड़े-बड़े संत महात्माओं मठाधीश जटाधारीयों को देखा परंतु किसी के अंदर राम नहीं दिखा. कोई कहे हमारे लिंग आजा परंतु भेदभाव ऐसा कि मठों में अंदर मालपुए बन रहे हैं और बाहर भंडारे में पूरियां चल रही है. स्पष्ट रूप से गुरु जी ने कह दिया कि तुम्हारे अंदर राम नहीं है तुम्हें गुरु नहीं बनाएंगे और आगे चल दिए.
साधना से मनुष्य अकेले भले ही ब्रह्मा या शंकर जी समान हो जाए परंतु इस भवसागर से केवल और केवल सद्गुरु ही पार लगाता है.सद्गुरु तो चलता फिरता मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सामान या परम योगेश्वर कृष्ण समान तीर्थ होता है.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||