मनका-22
|| धन्य दीप जहां सुरसर धारा ||
जिस प्रकार से आदि शंकराचार्य ने संपूर्ण भारत भ्रमण किया था उसी प्रकार से गुरु जी ने भी संपूर्ण भारत भ्रमण किया और पुनः नर्मदा क्षेत्र में आ गए. उन्होंने यह सार निकाला था पृथ्वी जैसे गौमाता है तो इस गौमाता का मस्तक भारतवर्ष है. यह अखंड तेज से देैदीप्यमान है. स्वामी विवेकानंद ने भी दूर रामेश्वरम से इस तेज के दर्शन किए थे. प्रथम तो मनुष्य जन्म धन्य है द्वितीय भारतवर्ष में जन्म और तृतीय यहां का सत्संग. यह सत्संग ही सुरसर धारा है जो ऋषि-मुनियों की परंपरा में चली आ रही है. भारत भूमि पर ही आदिनारायण अवतार लेते है. इसी भूमि पर श्री राम चले श्री कृष्ण चले कभी सभी देवी देवता चले हैं. गुरुजी विदेशियों को मांस मदिरा भक्षण की वजह से भोग योनि कहते थे. वे कहते थे कि विलायत रावण के बेटे नारायण तखत ने बसाई है. उसने शंकर जी से वरदान मांगा था कि मुझे ऐसा देश चाहिए जहां स्त्री पुरुष एकलिंग हो यानी समान हों. शंकर जी ने कहा तथास्तु. पाताल लोक में अहिरावण था. मय दानव भी वही गया था.
यह सत्य है कि अखिल विश्व में अतुलनीय उत्कर्ष है हमारा भारतवर्ष और जिसमें की नर्मदा क्षेत्र जहां एक से एक परमहंस प्रकट हुए.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||