मनका-24
|| पुत्र!नर्मदाकी परिक्रमा करो तुम्हें तुम्हारे गुरुवर मिलेंगे!” ||
अवश्य ही अपने पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण गुरु जी की मनोरथ सिर्फ और सिर्फ अपने गुरु की प्राप्ति की थी. नर्मदा क्षेत्र में पुनः आने पर होशंगाबाद और अब्दुल्ला गंज के कुछ लोगों को उन्होंने सलकनपुर मंदिर जाते हुए देखा. वे बली प्रथा के अनुसार अपने साथ बकरा बकरियां ले जा रहे थे. गुरुजी ने उन से पूछा तो उन्होंने बताया हमारी इच्छा पूर्ति होने पर बलि प्रथा के अनुसार हम माता को इन्हें भेंट चढ़ाएंगे. गुरुजी ने पूछा “इतनी बलिष्ठ देवी हैं?” उन्होंने कहा “हां”. तब गुरुजी ने निश्चित कर लिया हम भी इनके साथ चलेंगे. सलकनपुर विंध्यवासिनी मंदिर में तब मेला लगा हुआ था. गुरुजी ने कहा एक-दो दिन में थोड़ी भीड़ कम हो जाए फिर ध्यान लगाएंगे. मंदिर के पीछे पहाड़ी की ओर एक स्थान निश्चित करके गुरुजी ध्यानस्त हो गए. तब दूसरे ही दिन विंध्यवासिनी मां प्रकट हो गईं बोलीं ” पुत्र! क्या अभिलाषा है तुम्हारी?” गुरुजी ने कहा ” मां! गुरु प्राप्ति का मार्ग बताओ बस यही अभिलाषा है” मां ने कहा ” पुत्र!नर्मदा की परिक्रमा करो तुम्हें तुम्हारे गुरुवर मिलेंगे!”
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||