मनका – 29
|| मनसे सकल वासना भागी और केवल राम चरण लौ लागी ||
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री श्री श्री 1008 श्री दादाजी धूनीवाले ने सन 1931 में समाधि ली थी. उनकी समाधि के तुरंत बाद दादा भगवान ठन ठन पाल ने दादा धूनीवाले के ही रूप में कई लोगों को दर्शन दिए. सन 1932 में दादा भगवान ठन ठन पाल बरेला में प्रकट हुए. संपूर्ण महाकौशल क्षेत्र में एक से एक संत उत्पन्न हुए हैं.
गुरुजी तूमी वाले अपने गुरु दादा भगवान ठन ठन पाल महाराज को पाकर अति प्रसन्न थे. दिन – रात वे सेवा में लगे रहते. दादा भगवान का दरबार केंट रोड जबलपुर बरेला के पास जमुनिया गांव में लगता था . एक रोज रात के ठीक 12:00 बजे दादा भगवान बोले “ बेटा! हमें अभी चने की भाजी और मक्का के टिक्कड़ खाना है ” गुरुजी ने तुरंत कहा “अभी व्यवस्था किए देते हैं ”. गुरुजी में आलस्य तो नाम मात्र का नहीं था. रात के 12:00 बजे उन्होंने चक्की वाले से चक्की खुलवाई सामग्री लाए और भंडार गृह में अपने हाथों से चने की भाजी और मक्का के टिक्कड़ बनाकर दादा भगवान को परोस दिया. बस उन्होंने एक निवाला लिया और बाकी का प्रसाद बांट दिया.
// सीताराम सीताराम सीताराम सीता //
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||