मनका-36 – त्रिवाचा
|| त्रिवाचा – “ ठन- ठन में भी मैं ही हूं, पालन में भी मैं ही हूं और पार भी मैं ही लगाता हूं तो तू रहेगा कहां?”||
गुरुजी तूमी वाले बताते थे दादा भगवान ने उनसे तीसरी त्रिवाचा कही. वे तीन बार बोले, “ ठन- ठन में भी मैं ही हूं, पालन में भी मैं ही हूं और पार भी मैं ही लगाता हूं तो तू रहेगा कहां?” हमने तीनों बार कहा “ ऊपर” .
याने ब्रह्म भी मैं ही हूं माया भी मैं ही हूं. आदि सृष्टि करता आदिनारायण और आदिनाथ तीनों मैं हूं. उत्पत्ति स्थिति और लय तीनों शक्तियां मेरे हाथ में है. तो तू रहेगा कहां? उत्तर था “ ऊपर” ऊपर याने माया से परे.
गुरुजी तूमी वाले कहते थे बेटा हमने कह तो दिया कि माया से परे रहेंगे ऊपर रहेंगे परंतु हमें कई वर्ष लग गए उस वचन को पूरा करने में. रामायण कहती है “अक्षय वट ” बड़ का पेड़ माया से परे है. इसका कभी क्षय नहीं होता. इस पर यमराज का कोई कब्जा नहीं है . यह वही वटवृक्ष है जो तारानगर पंछी तीर्थ में है जिस पर तूमी वाले गुरुजी पंछी की तरह 12 बरस रहे.
// सीताराम सीताराम सीताराम सीता //
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमी वाले दादा जी की जय!!
दादा भगवान ठन ठन पाल की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||