मनका-25
|| “मेरे घाट किनारे-किनारे चले जा तुझे तेरा गुरु मिल जाएगा! “||
मां विंध्यवासिनी सलकनपुर के बताए मार्ग पर गुरुजी चल पड़े. अमरकंठ से उन्होंने अपनी परिक्रमा पैदल प्रारंभ करी जो तीन साल तीन महीने तेरह दिन की होती है और पुनः अमरकंठ में आकर अपनी परिक्रमा पूर्ण करी परंतु गुरु के दर्शन नहीं हुए.
गुरुजी कहते थे हम बड़े निराश हो गए. जीवन का सार तत्व हमें गुरु नहीं मिला. तब हमने ग्वारीघाट जबलपुर से जहर खरीद कर हाथ में रख लिया और निश्चय किया की इसे मुख में रखकर नर्मदा में समाधि ले लेंगे वहीं नदी में लुढ़क जाएंगे. हाथ में जहर लेकर घाट किनारे बैठ गए और मुख में रखने ही वाले थे कि नर्मदा मैया प्रकट हो गई और बोलीं “अरे बेटा! यह क्या कर रहा है? तेरा गुरु तो यहीं पर है ! बस मेरे घाट किनारे-किनारे चले जा तुझे तेरा गुरु मिल जाएगा!”
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||