मनका-17
|| लागी लागी सब कहें लागी बुरी बलाए और जिसके दिल में लग गई सोआर पार हो जाए||
सन्यास धर्म तो कई जन्मों का परिणाम होता है. गुरु जी ने बचपन में ही निश्चित कर लिया था कि हम गृहस्थ नहीं सन्यस्त होंगे. ऐसा कोई तीर्थ क्षेत्र ,धर्म क्षेत्र, सन्यासियों का अखाड़ा या मठ मठाधीश नहीं होंगे जहां वह पहुंचे ना हो. गुरु को पाने की ललक की ज्वाला उनके अंदर धधक रही थी परंतु उन्होंने देखा अधिकतर लोभ लालच और माया का प्रपंच है. भेद भाव देखने पर बोले गुरु तो उसे ही बनाएंगे जिसके अंदर हमें प्रभु श्री राम के दर्शन होंगे.
तीर्थाटन करने के बाद पुणे में राम टेकरी पर उन्होंने अपनी मिलिट्री ट्रेनिंग कंप्लीट करी. उनके हाथ पर अंगूठे और पहली उंगली के बीच एक गड्ढा था जिसे वह बताते थे की ट्रेनिंग के समय राइफल का छर्रा बैठ गया था. उन्होंने राइफल स्टेन गन टॉमी गन मशीन गन और टैंक भी चलाया था.
प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सैनिकों का एक जहाज सिंगापुर का विद्रोह कुचलने गया था गुरुजी भी सिंगापुर गए थे. जब उनसे पूछा गया क्या वहां पर युद्ध किया तो बोले एक गोली भी नहीं चली, युद्ध शांत हो गया और हम वहां से लौट आए.
!!संकलन- तारानगर- पंछी तीर्थ!!
ब्रह्मलीन परमहंस संत श्री तूमीवाले दादा जी की जय!!
||गुरु -भक्ति -माला – 108||